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रंग के, रूप के, जवानी के / ईश्वरदत्त अंजुम

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रंग के , रूप के, जवानी के
अब कहां दिन वो शादमानी के

था गुमां जिन की पायदारी का
वो फ़क़त बुलबुले थे पानी के

ग़म के किस्से जुड़े हैं अब इस में
दिन कहां अब को शादमानी के

वो सराबों के सिलसिले निकले
जिन पे हम को गुमां थे पानी के

हां में बस हां मिलाइये साहिब
अब नहीं वक़्त आना कानी के

रंजो-ग़म, आह, अश्क़, बे-चैनी
जुज़्वे-आज़म हैं ज़िन्दगानी के

आओ 'अंजुम' जियें तो हंस के जियें
क्या भरोसे हैं ज़िन्दगानी के।