रंग जीवन में भरूंगी एक दिन / अनु जसरोटिया
रंग जीवन में भरूंगी एक दिन
अपनी क़िस्मत ख़ुद लिखूंगी एक दिन
शम्अ की सूरत जलूंगी एक दिन
दह्र को रौशन करूंगी एक दिन
तेरे हर ज़र्रे की ख़ातिर ऐ वतन
रानी झाँसी सी लड़ूंगी एक दिन
ऐ भगत सिंह, ऐ शहीदे-मुल्को-क़ौम
मैं तिरी गाथा लिखूंगी एक दिन
मेरे बाबुल तेरे घर आँगन में मैं
बन के तुलसी फिर उगूँगी एक दिन
देश सैनानी गये थे जिस डगर
उस डगर मैं भी चलूंगी एक दिन
मुझ से हर रहगीर पायेगा दिशा
मील का पत्थर बनूंगी एक दिन
सर बुलन्दी है मिरी तक्दीर में
इक बगूले सी उठूँगी एक दिन
दाद देंगे मुझ को सब अहले-क़लम
इक ग़ज़ल ऐसी कहूंगी एक दिन
मेरे आँगन में भी उतरे वो कभी
चाँदनी से मैं कहूंगी एक दिन
चल रही हैं जो मुख़ालिफ़ सम्त से
उन हवाओं से लड़ूंगी एक दिन
ख़ुद बनाऊँगी मैं अपने रास्ते
अपनी मँज़िल ख़ुद चुनूँगी एक दिन
आ के खेलें मेरी बिटिया से कभी
चाँद तारों से कहूँगी एक दिन
है बहुत मा'सूम बच्चे की हँसी
इस हँसी पर मर मिटूँगी एक दिन
हर मुख़ालिफ़ रस्म को अब तोड़ कर
नीले अम्बर में उड़ूँगी एक दिन
जो परिन्दे उड़ रहे हैं मेरे साथ
उन से मैं ऊँचा उड़ूँगी एक दिन
ऐ हिमालय ऐ मुहाफ़िज़ हिन्द के
मैं अटल तुझ सी बनूँगी एक दिन
ये भी है तुम तक पहुँचने की सबील
फूल की ख़ुशबू बनूँगी एक दिन
कृष्ण जी की मूर्ति से ऐ 'अनु'
गीत मीरा के सुनूँगी एक दिन