बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: ईसुरी
रंग डारो ना लला को अलकन में।
पर जैं है मुकुट की झलकन में।
उड़त गुलाल लाल भये बादर,
परत आँख की पलकन में।
पकर पकर राधे मोहन खाँ,
मलत अबीर कपोलन में।
खेलत फाग परस पर ईसुर,
राधे मोहन ललकन में।
रंग डारो ना लला को अलकन में।
पर जैं है मुकुट की झलकन में।
उड़त गुलाल लाल भये बादर,
परत आँख की पलकन में।
पकर पकर राधे मोहन खाँ,
मलत अबीर कपोलन में।
खेलत फाग परस पर ईसुर,
राधे मोहन ललकन में।