भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रंग तरबूजे का / सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
Kavita Kosh से
रंग तरबूजे का
महक खरबूजे की !
रो-गाकर आजादी लाए
पहन लंगोटी खादी,
चार कदम भी चल नहीं पाए
इतनी चढ़ गई बादी
रंग तरबूजे का
महक खरबूजे की !
अमरीका में डांस करें
औ’ रूस में मारें कुश्ती
देखो अपने नेताओं की
यारों धींगा मुश्ती।
रंग तरबूजे का
महक खरबूजे की