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रंग मेरे साथ होली खेल रहे थे / प्रदीप मिश्र

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रंग मेरे साथ होली खेल रहे थे


गुलाब से चुराया गुलाबी रंग
टेशू से हथियाया केशरिया
घास से हरा रंग लिया उधार
नीला पछाडख़ाते समुद्र ने दिया उपहार
उगते हुए सूर्य ने मुस्कराकर
दिया लाल रंग
और मैंने इनको मिलाकर कर बनायी
अपनी रंगीन दुनिया

जिसमें तुम थी
मैं था और हमारा प्रेम

प्रेम था हमारे बीच
इसलिए उमंग थी
उमंग थी
इसलिए फागुन था
फागुन था इसलिए तरंग
तरंग में झूमते हुए
मुट्ठी में रंग लिए जब पहली बार
तुम्हारे कऱीब पहुँचा
देखा नीला रंग पछाड़ खा रहा था
तुम्हारी आँखों में
तुम्हारे गुलाबी गालों को छूते ही
झरने लगा गुलाब
मांग में उग आया सूर्ख़ लाल सूरज
पूरे बदन पर ख़िल गए टेशू के फूल
नदी अंगड़ाई लेने लगी तुम्हारी रगों में
पसर गया हरा रंग तुम्हारे सपनों में
मेरे जीवन के सारे रंग उमगने लगे
तुम्हारे अंगों में

मैं फ़सलों की तरह लहलहाते हुए
कह रहा था बुरा न मानो होली है

मेरा पोर-पोर रंग से सराबोर था
रंग मेरे साथ होली खेल रहे थे।