भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रंग हिरोशिमा / अनुक्रमणिका / नहा कर नही लौटा है बुद्ध
Kavita Kosh से
ब्लैक ऐंड व्हाइट फोटोग्राफ में गुलाबी
जो भाप बन कर उड़ गया
रंग हिरोशिमा
आँखें फाड़ हम देखते हैं
चारों ओर फैला रंग अँधेरा
हमारे ही जैसे दिखते हैं दानव
जिनका कोई देश नहीं, नहीं जिनकी कोई धरती
वाक़ई रंगहीन वे धरती से छीन लेना चाहते हैं हरीतिमा
रुकते ही नहीं सवाल
अनजाने ही रंगे गए हमारी चितकबरी चाहतों से
देर तक बहती है हिरोशिमा की याद
हिबाकुशा रंग है जीवन का
स्लाइड शो से परे सीटों पर से उड़ते
हमारे प्यार के रंगीन टुकड़ों का
नितान्त ही अँधेरे कमरे में फैलती
भोर की तड़पती उमँग का।