रंग / दिनेश कुमार शुक्ल

रंगों के ऊपर चढ़े रंग
रंगों के भीतर भरे रंग
भर आँख अगर देखोगे
तो यह धुँधले पड़ते जायेंगे
जब तुम्हें देखते देखेंगे
तो रंग भी रंग बदल लेंगे
कुछ गहरे पड़ते जायेंगे
कुछ हल्के होते जायेंगे
कुछ फूलों में खिल जायेंगे
कुछ सपनों में मुस्काएँगे
कुछ सारी रात जगायेंगे
कुछ तिनके बन कर आयेंगे
और आँखों में पड़ जायेंगे

अच्छा हो रंगों को तुम उनकी ही रंगत में रहने दो
रंगों पर अपना रंग चढ़ाना सबके बस की बात नहीं

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