भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रंग / मंजूषा मन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जीवन की तस्वीर बनाने को
जमा कर लिए थे कई रंग,
कई तुलिकाएँ,
मन का कैनवास,
आँखों में बसाये कई मोहक चित्र...

प्रकृति के रूप के लिए चटख रंग,
आकाश के वृहद आकार के लिए
नीले रंग के कई शेड्स,
चाँद को देने चांदी सी चमक
चुना धवल, उजला रंग
और भी कई सैकड़ों रंग
तुम्हारे लिए भी था एक रंग
था एक मेरा भी....

सब कुछ था तस्वीर के लिए
मैंने लिए रंग, पकड़ी तूलिका,
रचे प्रकृति के दृश्य,
चाँद- चांदनी, तारे, नदी, झरने, पंछी
सब कुछ बनकर हुआ तैयार...

अगले ही पल
देखी जो तस्वीर
अजब नज़ारे थे जो मैंने न रचे थे...

सब रंग आपस में मिलकर
बदल गए धब्बों में,
पल पल रूप बदलने लगी प्रकृति,
बेतहाशा भागने लगा चाँद
यूँ कि छोटा पड़ने लगा आकाश,

कोई रंग न रहा साफ

इन्हीं बदरंग धब्बों में
भाग रहे थे अलग अलग दिशाओं में
मैं और तुम भी
अपने अपने रंग समेटे।