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रंग : छह कविताएँ-1 (लाल) / एकांत श्रीवास्तव
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यह दाड़िम के फूल का रंग है
दाड़िम के फल-सा पककर
फूट रहा है जिसका मन
यह उस स्त्री के प्रसन्न मन का रंग है
यह रंग पान से रचे दोस्त के होंठों की
मुस्कुराहट का है
यह रंग है खूब रोई बहन की ऑंखों का
यह रंग राजा टिड्डे का है
जिसकी पूँछ में बंधे हैं
बच्चों के धागे और संदेश
यह रंग रानी तितली का है
जिसे एक बच्ची लिये जा रही है घर
यह रंग उस आम का है
जो टेसुओं के नाम से जानी जाती है
और जिसके सुलगते ही वसन्त आज जाता है
दरअसल यह उस आकाश-गंगा का रंग है
जिसे धारण करती है माँ अपनी माँग में
जिसके डर से हजारों कोस
दूर खड़ा रहता है काल
और माँ रहती है सदा-सुहागिन।