भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रंग : छह कविताएँ-6 (हरा) / एकांत श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साइबेरिया की घास हो
या अफ्रीका के जंगल
या पहाड़ हों सतपुड़ा-विंध्‍य के
दुनिया भर की वनस्‍पति का एक नाम है यह रंग

इस रंग का होना
इस विश्‍वास का होना है
कि जब तक यह है
दुनिया हरी-भरी ह

यह रंग जंगली तोतों के उस झुण्‍ड का है
जो मीठे फलों पर छोड़ जाता है निशान

यही रंग है जो पोखर के जल में रहता है
और हमसे कभी नहीं छीनता
हमारी कमीज का रंग

एक दिन कार्तिक में जब किसान पहुँचता है खेत
धान में लहराता है आखिरी बार यह रंग
और किसान की तरफ देखकर मुस्‍कुराता है
विदा की आखिरी मुस्‍कान

और दोनों हाथ जोड़ देता है- अच्‍छा!
शायद अलगे आषाढ़ में

यह रंग जब रक्‍त में शामिल हो जाता है
आदमी आखिरी सॉंस तक सहता है यातना
और उफ तक नहीं करता

मैं इस रंग को
अपने रक्‍त से दूर रखना चाहता हूँ।