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रंजित-सुरेश-धनु शरद-पूर्णिमा उदधि, उषा, विहंग-कलरव / प्रेम नारायण 'पंकिल'
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रंजित-सुरेश-धनु शरद-पूर्णिमा उदधि, उषा, विहंग-कलरव।
मुझको नित आमंत्रित करते वसुधागत तरूण बीज-उदभव।
विस्तीर्ण अवनि अंचल पसार कर विशद व्योम को श्यामलतम।
नक्षत्र-धवल-लिपि में मेरा आह्वान किया करते प्रियतम।
अतिशय मलीन मैं दीन-हीन पर अद्भुत तेरी माया है।
मेरे मन की हृदतंत्री ने प्रिय! तेरा ही स्वर गाया है।
रे! चैन छीनने वाले! आ, बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥88॥