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रक़्स करता है जहां तासीर में / रिंकी सिंह 'साहिबा'

रक़्स करता है जहाँ तासीर में,
धुन है ऐसी हल्क़ा ए ज़ंजीर में।

काटता है वह चटानें उम्र भर,
डूब जाती हूँ मैं जू ए शीर में।

अब अंधेरों से कहो रुख मोड़ लें,
आ गया सूरज मेरी तक़दीर में।

वक़्त की दहलीज़ पर ठहरा हुआ,
क़ैद है लम्हा कोई तस्वीर में।

वो मेरी आँखों में आता ही नहीं,
तुम नहीं जिस ख़्वाब की ताबीर में।

दर्द मीरा का उतर कर आ गया,
इश्क़ के चुभते हुए इक तीर में।

मेरे लहजे में है ख़ुशबू 'साहिबा' ,
शोख़ी ए गुल खुलती है तफ़्सीर में।