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रक्तबीज / कृष्ण कुमार यादव
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रक्तबीज फिर आ गए हैं
एक आतंक की छाया
ख़त्म नहीं होती
दूसरे की ख़बर आ जाती है
आज अमेरिका में
कल अफ़गानिस्तान में
फिर, किसी और जगह
जाति-धर्म की म्यानों में क़ैद
इन रक्तबीजों ने ओढ़ रखा है
सभ्यता और संस्कृति का झीना आवरण
हर सभ्यता और संस्कृति में
घुल जाने वाले ये रक्तबीज
दिन के उजाले में करते हैं
नर-कंकालों के अवशेष पर तांडव
दूर कहीं बैठा कोई
तैयार कर रहा होता है
कुछ नये रक्तबीज ।