भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रक्षा है निज आन की / प्रेमलता त्रिपाठी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बढों सयानों आगे आओ, रक्षा है निज आन की।
कठिन आपदा अब तो जागो, बात उठी सम्मान की।

झूठ सत्य पर करे सवारी, दुर्बल होता न्याय है,
कहीं अस्मिता दे दोहाई, धर्म और ईमान की।

निस्तेज होरहा जनमानस, विकट खड़े जंजाल में,
विकल मनुजता सोये कैसे, दशा देख इन्सान की।

मही भारती आभा जागे, सही नीति सुविचार हो,
पुण्य धरा क्यों खंडित करते, सीख अनेक सुजान की।

चाह जगे हों हलधर हर्षित, खेती सँवर लहर उठे,
सोना उगले खेत हमारे, भाग जगे खलिहान की।

बहुत हुआ आतंकी नर्तन, अभय सुखी समाज करें,
प्रेम यही अभिलाषा अपनी, कृपा ईश वरदान की।