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रक्स में रात है बदन की तरह / परवीन शाकिर
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रक्स में रात है बदन की तरह
बारिशों की हवा में बन की तरह
चाँद भी मेरी करवटों का गवाह
मेरे बिस्तर की हर शिकन की तरह
चाक है दामन ए क़बा ए बहार
मेरे ख़्वाबों के पैरहन की तरह
जिंदगी तुझसे दूर रह कर मैं
काट लूंगी जलावतन की तरह
मुझको तस्लीम मेरे चाँद कि मैं
तेरे हमराह हूँ गगन की तरह
बारहा तेरा इंतज़ार किया
अपने ख़्वाबों में इक दुल्हन की तरह