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रखता हूँ शम्मे-आह सुख़न के फि़राक़ में / वली दक्कनी

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रखता हूँ शम्‍मे-आह सुख़न के फि़राक़ में
हाजत नहीं चिराग की मेरे रवाक़ में

आब-ए-हयात-ए-वस्‍ल सूँ सीने के सर्द कर
जलता हूँ रात-देस पिया तुझ फि़राक़ में

सुनकर ख़बर सबा सूँ गरेबाँ कूँ चाक कर
निकले हैं गुल चमन सूँ तेरे इश्तियाक़ में

ऐ दिल अक़ीक-ए-लब के ये आए हैं मुश्‍तरी
मोती न बूझ ज़ुहरा जबीं के बलाक़ में

तेरे सुख़न के ऩग्‍मा-ए-रंगीं कूँ सुन 'वली'
डूबा अरक़ के बीच 'इराक़ी' इराक़ में