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रखते सबकी खोज कबूतर / मधुसूदन साहा
Kavita Kosh से
ऐंटीना पर बैठा करते
रंग-रंग के रोज कबूतर।
उजले, नीले औए सलेटी
दादी देखे लेटी-लेटी,
झुंड बाँध आंगन में उतरे
करने को वनभोज कबूतर।
चिकनी-चिकनी चकमक पाँखे
गोल-गोल सुंदर-सी आँखें,
छत पर साँझ-सबेरे आकर
दिखलाते हैं पोज कबूतर।
दूर-दूर तक खत ले जाते
संदेशा सबको पहुँचाते,
जो भी जहाँ रहे घर-बाहर
रखते सबकी खोज कबूतर।
कभी किसी से नहीं झगड़ते
कभी न किसी बात पर लड़ते,
शांतिदूत बनकर जाते हैं
भारत से कंबोज कबूतर।