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रखते है इत्तिफाक जब / मोहम्मद इरशाद

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रखते है इत्तिफाक जब उनके बयाँ से हम
अब क्या कहें बताइये अपनी जबाँ से हम

जिसमें कि बेवफाई का हरगिज़ न ज़िक्र हो
उनकों सुनाये दास्ताँ ऐसी कहाँ से हम

चलते हैं इसमें ज़मीन पे नीची किये नज़र
किरदार में बलन्द हैं इस आसमाँ से हम

वो लोग क्या गये कि दुनिया उमड़ गई
जाएँगे ऐसे देखना कभी इस जहाँ से हम

तुम दो कद़म चले कि बस लड़खड़ा गये
गुज़रे हैं सौ-सौ बार ऐसे इम्तिहाँ से हम

‘इरशाद’ सौ न जीने की दे दुआ
पल की ख़बर नहीं जियें इतना कहाँ से हम