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रख़्त-ए-सफर है इस में क़रीना भी चाहिए / फ़ैसल अजमी
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रख़्त-ए-सफर है इस में क़रीना भी चाहिए
आँखें भी चाहिए दिल-ए-बीना भी चाहिए
उन की गली में एक महीना गुज़ार कर
कहना के और एक महीना भी चाहिए
महकेगा उन के दर पे ज़ख्म-ए-दहन है ये
वापस जब आओ तो इसे सीना भी चाहिए
रोना तो चाहिए है के दहलीज़ उन की है
रोने का रोने वालो क़रीना भी चाहिए
दौलत मिली है दिल की तो रक्खो सँभाल कर
इस के लिए दिमाग़ भी सीना भी चाहिए
दिल कह रहा था और घड़ी थी कु़बूल की
मक्का भी चाहिए है मदीना भी चाहिए