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रखो खुला यह द्वार (नवगीत) / कुमार रवींद्र

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जाने कब
सूरज आ जाये
रखो खुला यह अपना द्वार
 
बच्चे हँसे
सुना तुमने
वह हँसी धूप को टेर रही
चिड़िया उड़कर
अपने पंखों में सूरज को घेर रही
 
घर में उनको
आने तो दो
मिट जायेगा सब अँधियार
 
थोड़ा-सा तो आसमान
इस खिड़की से भी दिखने दो
परदे खोलो
तितली को संदेश फूल का
लिखने दो
 
देखो, पहले भी
दस्तक दे
लौट चुकी वह कितनी बार
 
जोत हवा में तैर रही जो
उसे भरो तो आँखों में
तभी देख पाओगे अचरज
जो रचती रितु शाखों में
 
बचपन में
जो सपने देखे
उनको होने दो साकार