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रख लो दयामय शरण में / प्रेम नारायण 'पंकिल'

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रख लो दयामय शरण में।
देखते ही हो क्या रखा इस अधम के आचरण में।
रख लो दयामय शरण में।।

मुण्को न हो चिनता भले तुमको मेरी परवाह है।
मैं भीख तुमसे माँगता दाता मेरी यह चाह है।
अपनी सकल लघुता लिये मिट जांॅय तेरे चरण में-
रख लो दयामय 0...................................।।1।।

मरूभूमि-उर शाइल बना उमड़े भगति की त्रिपथगा।
नित नवल प्रेमास्वाद की प्रियतम पिपासा दे जगा।
आसीन हों तेरे मृदुल पद कंज अंतःकरण में-
रख लो दयामय 0...................................।।2।।

है एक तरफा ही तुम्हें रखना प्रभो अपनापना।
स्वयमेव ही सम्पन्न कर इस नीच की आराधना।
तुम तो निरत रहते सदा भवभीर बाधा हर में-
रख लो दयामय 0...................................।।3।।

रहती सदा तेरी कृपा की नीर से भींगी पलक।
असहाय सुत की हाय सुन तेरा हृदय जाता दलक।
बस अम्ब-अंचल ओट एक समर्थ पोषण-भरण में-
रख लो दयामय 0...................................।।4।।

मुझको सभी गति-मति परिस्थिति में तेरी अनुभूति हो।
तेरी युगल-पद-वंदना मेरी विशाल विभूति हो।
धुल जाय तेरी याद ‘पंकिल’ प्राण, जीवन, मरा में-
रख लो दयामय 0...................................।।5।।