रगों में मेरी शरारों का रक़्स जारी है / निर्मल 'नदीम'
रगों में मेरी शरारों का रक़्स जारी है,
जुनूँ है, रंज है, ग़म है कि बेक़रारी है।
दिल ए असीर के ज़ख़्मों में क्या नहीं मौजूद,
वफ़ा है, इश्क़ है, वहशत है, जाँ निसारी है।
लबों पे दश्त है आंखों में ख़ून के धब्बे,
समंदरों से मगर अपनी रूबकारी है।
अदा ए नाज़ से करता है ज़ुल्म वो मुझपर,
उसे न ख़ौफ़ ए ख़ुदा है न शर्मसारी है।
हवा में घुलती हुई ख़ुशबुओं ने फ़रमाया,
गुरेज़ तुमसे नहीं जग से पर्दादारी है।
जिसे गले से लगाया बना दिया सूरज,
बुलंदियों से कहीं बढ़ के ख़ाकसारी है।
थिरक रहे हैं मुंडेरों पे मोर ख़्वाहिश के,
वो जब से आया है दिल में सुरूर तारी है।
तुम्हारे चेहरे से बहता है नूर का झरना,
तुम्हारी ज़ुल्फ़ों से आलम में आबयारी है।
फ़लक से होती है नाज़िल दुआओं की तनवीर,
इबादतों से मेरा रंग ए आह ओ ज़ारी है।
करीब आ के कभी देखो मेरी तन्हाई,
इस इंतज़ार के दामन में क्या ख़ुमारी है।
परिंदे शाख़ से इक एक कर के उड़ते गए,
हमीं बचे हैं हमारी भी अब के बारी है।
बदन तो सूरत ए दीवार ए इश्तेहार हुआ,
ज़बां पे इश्क़ के छालों की लाला कारी है।
ढली है शाम बुझाने में आग सूरज की,
चराग़ ए दर्द जलाने में शब गुज़ारी है।
हमारे ख़्वाब भटकते हैं दश्त ओ सहरा में,
किसे बताएं कि क्या आरज़ू हमारी है।
नदीम दोनों जहां उसकी दोस्ती पे निसार,
उसी से रंज उसी से ही ग़मगुसारी है।