रचना बड़ी कविता / कुमार सुरेश
बड़ी कविता रचने के लिये
बड़ा कवि एकत्र करता है
शिल्प, बिम्ब और अलंकार
शब्दों का ऐसा चमत्कार
कितना ही सुलझाओ
पहेली का हल नहीं मिलता
असाधारण समझा नही जा सकता बंधु
बडी घटनायें अपनी स्थूलता से
बडे़ कवि की संवेदना को चोट पहुँचाती हैं
वह गौर से देखता है
बेहद छोटी चीजों को
पूरी गहराई से सोचता है उन पर
कमाल यह कि कभी-कभी वे कोई मुद्दा नहीं होतीं
अमूर्त को भाँपने में हर दिमाग
भोथरा सिद्ध होता है
बडे़ कवि की नजर एक साथ
बड़बड़ाहट, प्रेमालाप, निकर, बेतार के तार
प्यार की प्रबल सम्भावना, बैसाखी और
दीवार पर पेशाब करते आदमी पर पड़ जाती है
हालाँकि इनका आपस में कोई संबंध नहीं
वह इन्हें एक ही कविता में जोड़ के
अपनी जोड-तोड़ क्षमता का देता है प्रमाण
तमाम रंगों, गंधों संवेदनाओं, संभावनाओं यानी की
बीजों और फूलों को
जानबूझकर छोड़़ देता है बड़ा कवि
ये आदिम प्रतीक वर्जित हैं
अभिजात्य कविता में
वह गढ़ता है नये नारे
रचता है जटिलता का नया शास्त्र
ताकि उसके आधुनिकता बोध पर
शक की कोई छाया न गिरे
जिन्दा कविता अपनी लिजलिजी गरमाहट से
बडे़ कवि की नाजुक चेतना को चोट पहुँचाती है
इसलिये जानबूझ कर भूल जाता है वह
कविता में दर्द डालना ,प्रेम डालना और सम्मोहन डालना
थोडे़ में कहें तो हृदय डालना
इसलिये उसकी कविता का दिल नहीं धड़कता
अपने ही रचे बिम्ब की ऊँचाई पर बैठा बड़ा कवि
देखता है अपने आसपास की दुनिया
जैसे कोई चक्रवर्ती सम्राट अपने राज्य को
लिखता है कविता इस अंदाज में
जैसे सम्राट अपनी प्रजा पर हुकुम जारी करता है ।