भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रची उषा ने ऋचा दिवा की / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
रची उषा ने ऋचा दिवा की
- निशा सिरानी;
सुख के आमुख खिले कमल-मुख,
- पुलके प्रानी;
रूप अनूप धूप के धन के
- खिले मुकुल से,
महिमा हुई मही की गोचर,
- रज की रोचक;
भूचर के स्वर, खेचर के पर
- भास्वर हुलसे:
जल में जगी ज्योति की रम्भा-
- मल की मोचक ।