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रचो, प्रेम की परिभाषा तुम / अमरेन्द्र

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रचो, प्रेम की परिभाषा तुम
परिभाषा, पर प्रेम नहीं है।

इसमें रंग अगर फूलों का
तो यह आँगन भी शूलों का
सुख है मनचाही भूलों का
जोड़-घटाव करो मत साथी
जीवन का यह क्षेम नहीं है।

पाप-पुण्य, यम-नियम की बातें
एक प्रेम पर सौ-सौ घातें
मलय-समीर की झंझावातें
बहने में लहरें भी नापो
तैराकी का नेम नहीं है।

प्रेम, नुकीला पत्थर भी है
स्वर्ग-सुधा का यह घर भी है
अमृत-विष का सागर भी है
मन पर लगा हुआ यह उबटन
तन पर केवल हेम नहीं है।