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रच्छा करी बटुकनाथ भैरों / गढ़वाली

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

रच्छा करी बटुकनाथ भैरों,
चौड़िया नारसिंह, वीर नौरतिया नारसिंह।
ढौंढिया नारसिंह, चौरंगी नारसिंह।
फोर मंत्र ईश्वरो वाच।
ऊं नमो आदेश, गुरु कौं आदेश!
प्रथम सुमिरौं नादबुद<ref>भैरवनाथ का एक नाम</ref> भैरों,
द्वितीय सुमिरौं ब्रह्मा भैरों,
तृतीय सुमिरों मछेन्द्रनाथ भैरों,
मच्छ रूप धरी ल्यायो।
चतुर्थ सुमिरौं चौरंगी नाथ,
विंधा उत्तीर्ण करी ल्यायों।
पंचमें सुमिरों पिंगला देवी,
षष्ठे सुमिरौं श्री गुरु गोरख साई,
सप्तमे सुमिरौं चंडिका देवी!
या पिंडा<ref>शरीर</ref> को छल करी, छिद्र करी,
भूत, प्रेत हर ले स्वामी!
प्रचंड बाण मारि ले स्वामी!
सप्रेम सुमिरौ नादबुद भैरों,
तेरा इस पिंडा को ध्यान छोड़ादे!
इस पिंडा को भूत, प्रेत, ज्वर उखेल<ref>दूर कर दे</ref> दे स्वामी!
फिर सुमिरौं दहिका देवी,
इस पिंडा को दग्ध बाण उषेल दे स्वामी!
अब मैं सुमिरौं कालिपुत्र कलुबा वीर,
द्यू लो तोई स्वामी गूगल को धूप,
कलुवा वीर आग रख पीछ रख!
सवा कोस मू रख, पाताल मू रख!
फीली फेफ्नी को मास रख,
मुंड को मुंडारो उखेल,
मुंड को जर उखेल!
पीठी को सलको उखेल,
कोरवी की धमाक उखेल,
बार बिथा, छत्तीस बलई<ref>बला</ref> तू उखेल, रे बाबा!
मेरी भक्ति, गुरु की शक्ति, सब साचा
पिंडा राचा, चालो मंत्र, ईश्वरो वाच
फोर मंत्र, फट् स्वाहा,
या बिक्षा नी आन दूसरी बार।

शब्दार्थ
<references/>