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रजपूती कै बोझ मरै तेरी इज्जत भारी ना सै / मेहर सिंह

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धुर दिन तैं मनैं जाणूं सूं इसा छत्रधारी ना सै।
रजपूती कै बोझ मरै तेरी इज्जत भारी ना सै।टेक

पहलम तो तेरी गलती या तूं आज बिछड़ कै आया
दो पिसे का मजदूर फिरै तनैं कितना घमण्ड दिखाया
अपणी आपै करै बड़ाई तू कायर बण्या बणाया
छत्रापन के जरिये तै तनैं क्यूं ना ब्याह करवाया
कह द्यूंगा तो रोवैगा के तेरी मांग कुंवारी ना सै।

इसे नौकर की लौड़ नहीं ईब किसपै स्यान धरै सै
अपणा किणा देख आज तेरा मुश्कल पेट भरै सै
झूठी शेखी मारै मत तेरे तै कोण डरै सै
माणस नै दे मार इसी तेज कटारी ना सै।

सत पुरुषों का दुनियां म्हं ईश्वर बेड़ा पार करै सै
बेइमान बेइमानी तै बेअकली जारि करै सै
मक्कारी नैं चलै तेरी के मक्कार करै सै
बे मतलब और बिना काम की क्यों तकरार करै सै
बेइमान लुच्चे-गुण्ड्यां की या दुनियां सारी नां सै।

घूम जमाना देख लिया मिल्या कोए नहीं मरहम का प्यारा
बख्त पड़ै जब धोखा देज्यां करज्यां यार किनारा
मेरा गाों नैं नाश कर्या हुअया कुणबा दुश्मन सारा
मैं के फौज कै लायक था इन रागनियां नै मार्या
कहै मेहर सिंह इसतै बत्ती तेरै और बिमारी ना सै।