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रट कै करतार की माला / मेहर सिंह
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जीणा दिन चार होज्यागा पार
रट कै करतार की माला।टेक
लाग्या था कुबद कमावण
बण मैं गया जानकी नै ठावण
उस रावण के शेर, चालै फैर, मत कर बैर, कापाला।
मुर्ख बात घड़ै क्यू ठाली
तेरी तै एक पेश ना चाली
उस बाली की ढाल, खाज्या काल, मतकरै आल, हो चाला
किचक था खोहा खेड़ी
घाल ली काल बली नै बेड़ी
छेड़ी द्रोपद नार, वो दिया मार, जो सरदार का साला।
मेहर सिंह भजन कर सूत
वे हों सैं देशां के ऊत
यम के दूत करोड़, दें सिर फोड़, ले ज्यांगे तोड़ कै ताला।