भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रतनारी हो थारी आंखड़ियाँ / रसिक बिहारी
Kavita Kosh से
रतनारी हो थारी आंखड़ियाँ।
प्रेम छकी रस-बस अलंसाणी जाणि कमल की पांखड़ियाँ॥
सुन्दर रूप लुभाई गति मति हौं गई ज्यूं मधु मांखड़ियाँ।
रसिकबिहारी वारी प्यारी कौन बसी निसि कांखड़ियाँ॥