Last modified on 22 जुलाई 2011, at 04:56

रत्ना! तू जीती, मैं हारा / गुलाब खंडेलवाल


रत्ना! तू जीती, मैं हारा
पर निज प्रभु को सौंप चुका मैं अब यह जीवन सारा
 
ऋणी सदा नारी का है नर
जिसे जिलाती वह मर-मरकर
सुधि तेरी भी लेगा मत डर
                         जिसने मुझे पुकारा
 
घेर न मुझको अश्रुकणों से
कर विमुक्त परिणय-वचनों से
जुड़ने दे हरि के चरणों से
                          छूटे यह भव-कारा
 
नाम भले ही जग ले मेरा
देखे नहीं त्याग-तप तेरा
किन्तु राम के धाम बसेरा
                           होगा साथ हमारा
 
रत्ना! तू जीती, मैं हारा
पर निज प्रभु को सौंप चुका मैं अब यह जीवन सारा