रत्ना! तू जीती, मैं हारा
पर निज प्रभु को सौंप चुका मैं अब यह जीवन सारा
ऋणी सदा नारी का है नर
जिसे जिलाती वह मर-मरकर
सुधि तेरी भी लेगा मत डर
जिसने मुझे पुकारा
घेर न मुझको अश्रुकणों से
कर विमुक्त परिणय-वचनों से
जुड़ने दे हरि के चरणों से
छूटे यह भव-कारा
नाम भले ही जग ले मेरा
देखे नहीं त्याग-तप तेरा
किन्तु राम के धाम बसेरा
होगा साथ हमारा
रत्ना! तू जीती, मैं हारा
पर निज प्रभु को सौंप चुका मैं अब यह जीवन सारा