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रद्द हुआ कानून / सूर्यकुमार पांडेय

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                एक पद्य कथा

राजकुमार शुक्ल चम्पारण के किसान थे एक ग़रीब ।
भले नील की खेती करते, लेकिन फूटे हुए नसीब ।।

निलहे गोरे गाँव-गाँव में जुल्म किया करते भारी ।
परेशान करते थे सबको, आ-आ कर अत्याचारी ।।

सुना उन्होंने, गांधी जी कांग्रेस-अधिवेशन में आए ।
राजकुमार शुक्ल उनसे मिलने लखनऊ शहर धाए ।।

गए कानपुर जब गांधी जी, किया शुक्ल जी ने पीछा ।
अपनी तरफ़ महात्मा जी का ध्यान उन्होंने यों खींचा ।।

बोले — चम्पारण चलिए, बापू ! बस, यही कृपा करिए ।
हम ग़रीब नील के किसानों की दुर्दशा आप हरिए ।।"

हुए द्रवित गांधी जी, बोले — "चम्पारण मुझको आना।
मैं कलकत्ते आऊँगा, तुम मुझे वहाँ से ले जाना ।।"

गांधी जी से पहले पहुँच गए कोलकाता राजकुमार ।
उन्हें साथ लेकर पटना वाली गाड़ी पर हुए सवार ।।

पटना में राजेन्दर बाबू के घर दोनों लोग गए ।
सरल स्वभाव, बिहार प्रान्त का देखा, अनुभव मिले नए ।।

वहाँ वक़ीलों से मिलकर गांधी जी ने हालत जानी ।
कैसे तीन बटा बीस खेती पर गोरे करते मनमानी ।।

इसे 'तीन कठिया' कहते थे, नील उगाना था अनिवार्य ।
यह कानून रद्द करवाना होगा, पर मुश्किल था कार्य ।।

गांधी जी धुन के पक्के थे, उनसे हर मुश्किल हारी ।
गए मुज़फ़्फ़रपुर, तिरहुत, फिर पहुँच गए मोतीहारी ।।

नील मालिकों और फ़िरंगी अफ़सरान से मिले वहाँ ।
बात नहीं कोई बन पाई, बहुत कठिन था काम यहाँ ।।

गांधी जी पर चला मुक़दमा, गोरों की ताक़त हारी ।
गाँव-गाँव में जाकर गांधी जी ने जाँच रखी जारी ।।

तब बिहार का लाट गवर्नर, सर एडवर्ड गेट था नाम ।
उसने भेजा पत्र कि मुझसे मिलिए, सुलझाऊँगा काम ।।

हुई गेट से भेंट, कमेटी एक बनी इस हेतु तुरन्त ।
सौ सालों से बाद ’तीन कठिया’ का ऐसे आया अन्त ।।

हार मान ली अँग्रेज़ों ने, गूँजा गांधी का जयगान ।
रद्द हुआ कानून, ख़ुश हुए, चम्पारण के नील किसान ।।