भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रपट / एरिष फ़्रीड

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिन्हें मैं हिम्मत बंधाना चाहता था
उन्हें मेरी आवाज़ नकली-सी लगी
शायद मैं सिर्फ़ ख़ुद को ही
हिम्मत बंधाना चाहता था

बात ये चली नहीं :
मैंने देखा अपने डर को
और बेबस रहा
क्योंकि मैं बेबस रहा

चारा न रहा सिवाय कहने के
इस बेबसी को
यूँ भरा था उससे लबालब
चुप रहना नामुमकिन था

कुछ एक ने मेरी सुनी
जो चन्द ही दिन पहले
मेरी हिम्मत बंधाना
सुना ही नहीं करते थे

जिनकी मदद करना चाहता था
अपनी हिम्मत के साथ
शायद उनकी मदद करता हूँ
अपनी बेबसी के साथ

मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य