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रफ़्तार-ए-उम्र क़त-ए-रह-ए-इजि़्तराब है / ग़ालिब
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रफ़्तार-ए-उम्र क़त-ए-रह-ए-इजि़्तराब है
इस साल के हिसाब को बर्क़ आफ़्ताब है
मीना-ए-मय है सर्व नशात-ए-बहार से
बाल-ए-तदरव जल्वा-ए-मौज-ए-शराब है
ज़ख़्मी हुआ है पाश्रा पा-ए-सबात का
ने भागने की गूँ न इक़ामत की ताब है
जादाद-ए-बादा-नोशी-ए-रिन्दाँ है शश जिहत
ग़ाफ़िल गुमाँ करे है कि गीती ख़राब है
नज़्ज़ारा क्या हरीफ़ हो उस बर्क़-ए-हुस्न का
जोश-ए-बहार जल्वे को जिस के नक़ाब है
मै ना-मुराद दिल की तसल्ली को क्या करूँ
माना कि तेरी रूख़ से निगह कामयाब है
गुज़रा ‘असद’ मसर्रत-ए-पैग़ाम-ए-यार से
क़ासिद पे मुझ को रश्क-ए-सवाल-ओ-जवाब है