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रफ़्ता रफ़्ता मेरे घर तक आ पहुँचा / रवि ज़िया

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रफ़्ता रफ़्ता मेरे घर तक आ पहुँचा
शोर समंदर का अंदर तक आ पहुंचा

गिरता जाये पत्ता-पत्ता शाख़ों से
दुख का मौसम सब्ज़ शजर तक आ पहुँचा

धूप में साये का पीछा करते-करते
मैं ये किस बेनाम नगर तक आ पहुँचा

इतनी गहरी थी मंज़र की ख़ामोशी
सन्नाटा मेरे अंदर तक आ पहुँचा

धूप अचानक हाथ छुड़ा कर चली गई
कुहरे का बादल मंज़र तक आ पहुँचा

भूल गया था अपना पता ठिकाना भी
शुक्र करो मैं वापस घर तक आ पहुँचा

ख़ैर मनाओ घर के बन्द दरीचों की
दस्ते-फ़रियादी पत्थर तक आ पहुँचा

दिल की बात 'ज़िया' कब उस तक पहुँचेगी
चढ़ता पानी अब तो सर तक आ पहुँचा।