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रफ़्ता रफ़्ता सब मनाज़िर खो गए अच्छा हुआ / प्रकाश फ़िकरी
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रफ़्ता रफ़्ता सब मनाज़िर खो गए अच्छा हुआ
शोर करते थे परिंदे सो गए अच्छा हुआ
कोई आहट कोई दस्तक कुछ नहीं कुछ भी नहीं
भूली बिसरी इक कहानी हो गए अच्छा हुआ
एक मुद्दत से हमारे आईने पे गर्द थी
आँसुओं के सील उस को धो गए अच्छा हुआ
बे-कली कोई न थी तो दिल बड़ा बे-ज़ार था
अब हवादिस दर्द इस में बो गए अच्छा हुआ
बे-सबब रोता था ‘फिक्री’ और रूलाता था हमें
अब ज़माना हो गया उस को गए अच्छा हुआ