भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रफूगरी / चंद्रप्रकाश देवल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

म्हैं आयौ थारी डेहळी
तौ आवूंला, इंछा-वांछा सूं भर्योड़ौ नाकांछेक
उम्मेद सूं लकदक देही लेय
लूंदा-लूंदा आस सूं थेथड़ीज्योड़ौ
बोझाळू
आपरा नीचा कर नैण चोजाळूं

कीं नीं कैय
बोलौ-बोलौ फगत अेकधार भाळतोड़ौ
मनोमन कित्तौ कांईं मांगतोड़ौ
अैड़ा आवण में कठै मरजाद
धकली डेहळी रौ करब ई घटै

अळवांणै मनां किस्यौ गसकौ
छेकलादार प्रीत रौ कांई ठसकौ
कूढौ कित्तौ कांई पण बूक रीती
पाछी दूजै छिण वा इत तिरस फीटी
थूं आई
तौ आवैला निस्चै ई
फूलां री पांखड़़ी जैड़ी फारक आतमा लेय
घटाटोप अंधारा नै सैंचन्नण करती
दिप-दिप पळकती
आवगी पांणी बण
जुगांनजुग री तिस मैटती
रूं-रूं में पैसती, सळवळती
आवगी जूंण नै सरजीवण करती

म्हारै अंतस
नवी चेतना रौ वपराव
थारी पधरावणी
जांणै रितुराज व्हियौ व्है पांवणौ
पांनखर रै दैस
दत्त रै रेजलै पड़्योड़ौ-बूढौ दातार मन लेय
बालै वेस

जावती
सगळां री निजर बचाय
धर देवैला
आपरी आतमा री अेक चिंदी
पंडेरी माथै सेतमेत
उण चिंदी नै गोडा माथै लेय
म्हैं म्हारी आतमा रै देवण थेगळी
कारी रै माप रौ छेकलौ हेरूंला
रफूगरी रै पांण
राजी-राजी उडीकूंला
आपरै खोळ्यिै
अेक साबत आतमा रै व्हैण रा आसार