भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रब्बा, मेरे नसीब में ऐसी बहार दे / देवी नागरानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अपने जवान हुस्न का सदक़ा उतार दे
दर्शन दे एक बार मुकद्दर संवार दे|

जो खिल उठें गुलाब मेरे दिल के बाग़ में
रब्बा, मेरे नसीब में ऐसी बहार दे|

अच्छा तो मेरे क़त्ल में मेरा ही हाथ था
आ सारी तुहमतें तू मेरे सर पे मार दे|

इक जामे-‍बेख़ुदी की है दरकार आजकल
हर ग़म को भूल जाऊँ मैं, ऐसा ख़ुमार दे|

मोहलत ज़रा सी दे मुझे लौटूं अतीत में
दो चार पल के वास्ते दुनियां संवार दे|