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रब से जो भी मिला बुरा न हुआ / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
रब से जो भी मिला बुरा न हुआ
दर्द मेरा कभी गिला न हुआ
याद तेरी कसक रही दिल में
भूल जाऊँ कभी ऐसा न हुआ
कौन ऐसा है इस ज़माने में
जिंदगी में जिसे धोखा न हुआ
जख़्म उल्फ़त ने दिये हैं इतने
कोई मरहम कोई दवा न हुआ
चाँदनी रात जलाने आयी
चाँद उसका तो बेवफ़ा न हुआ
ज़ुल्फ़ बिखरा रहीं घटाएँ हैं
बूँद भर का भी आसरा न हुआ
बेरुखी अब भी कसमसाती है
दर्द अब तक मेरा रवां न हुआ
मुझ में तू इस कदर समाया है
दिल ये ग़म से कभी रिहा न हुआ
याद तेरी है समन्दर जैसी
तू कभी दिल से ही जुदा न हुआ