भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रब हो साजिश में शामिल तो क्या कीजिए / श्रद्धा जैन
Kavita Kosh से
रब हो साज़िश में शामिल तो क्या कीजिए ,
मौत बन जाए साहिल तो क्या कीजिए
उसके शानो पर रोना हुआ है फज़ूल ,
मेरा साजन है गाफिल तो क्या कीजिए
दर्द कहने का अंदाज़ है बस जुदा ,
गर जो थम जाए महफ़िल तो क्या कीजिए
तुम ने पाई बुलंदी नई भी तो क्या ,
हो खुशी ही न हासिल तो क्या कीजिए
फूल ही फूल थे इस फ़िज़ा में खिले
मैं ही काँटों के काबिल तो क्या कीजिए
सूखा फिर भी नहीं है, दरख़्त -ए- वफ़ा
गर हो मौसम ही बोझिल तो क्या कीजिए