भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रमई / दुःख पतंग / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
रमई जा रहा है
शहर
अनाज के बोरों के साथ
ट्रक में लदकर
छोड़कर अपना घर
नदियों,पेड़ों से करके वादा –
कि लौटेगा
उसके आने तक प्रतीक्षा करेगी नदी
बचाए रखेगी खुद को सूखने से
कि वह आएगा
और तैरेगा उसकी धारा में
चढ़ेगा पेड़ों की पीठ पर
विश्वास है
पेड़ों को भी
रमई को भी
विश्वास है
कि वह लौटेगा
पेड़ों की पुकार में
नदी की धार में
जीवन के हाहाकार में
लौटेगा वह अपने बूढ़े सपनों पर सवार एक दिन
गाँव से शहर की ओर भाग रहा है ट्रक
भाग रहा है रमई का मन गाँव की ओर
बढ़ रही है
गाँव से शहर की दूरी।