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रमतिया / श्याम महर्षि

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जलम सूं
छव चौमासा
बड़ो टाबर,
रामदेव जी रै
मगरियै मांय
आपरे घर री
न्यारी रा
बणैड़ा माटरी रा रमतिया
बैचै आठ-आठ आनां मांय।

नाना-मोटा
आंका-बांका
रंग-बिरंगा
भांत-भांत रा
रमतिया बेचतो
छव बरस रो
बिरमो
समझावै
आपरै मन नैं,
सगळा रमतिया
थारै खेलण रा नीं।

बिरमो उदास
उण रै टाबर मन मा,
हुवै उथळ-पुथळ
बो
करै राड़-अपणै-आपसूं
रमतिया
इत्ता हुवै
चाहै बित्ता
हुवै टाबरां खातर ई।
मंडतै मगरियै
आंवता मोट्यार-लुगायां
अर टाबर
रमतियां रो
मोल करै
सामरथ सारू
खरीदै,
माटी रा रमतिया
ऊंट, घोड़ा, हाथी
चूला-चाकी
महल-माळिया
अर पींपाटी।
बिझणै सूं
निवड़ता रमतिया
देखतो-देखतो बिरमो
हुयग्यो बडेरो
सिंझ्या तांई।