रमते राम फकीरां का दुनिया में ठौर-ठिकाणा के / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
रमते राम फकीरां का दुनिया में ठौर-ठिकाणा के
आपस मैं मन मिलैं नहीं तो मिलणा और मिलाणा के
सोच-समझ के काम करै तो उसका फल मिट्ठा हो सै
बिना विचारे करणी कर कै फेर पाछै पछताणा के
निज़र बता दे सै माणस की, मन की बात छिपै कोनी
मिलै नहीं आदर जिस घर में, उस घर आणा-जाणा के
सब मिल बैठ बाँट के खाणा, असली धरम बताया सै
भुक्खा मरै पड़ोसी तो फिर, खुद का पीणा-खाणा के
परमपिता परमेसर की सन्तान जगत् या सारा सै
इसमैं छोट्टा और बड़ा के, अपणा और बिराणा के
पालै-पौसै-पेट भरै वा धरती सबकी माँ हो सै
माँ पर संकट आज्या तो मर-मिटर्ण सै घबराणा के
सदा किसै का बखत एक-सा रह्या नहीं इस दुनिया मैं
समझ दिनां का फेर, भला अपणे मन का समझाणा के
जो बैरागी मन माया के मोह-जाल नै काट धरै
उसने रूक्खा-सुक्खा के और बस्तर फट्या-पुराणा के
चार दिनां की रात चानणी फेर अंधेरी आ ज्यागी
आणी-जाणी चमक-दमक पर मूरख मन! इतराणा के
‘मधुप’ जगाणा सुत्यां नै तो बात बड़ी मामूली सै
जगा सकै ना मुर्द्यां नै वो राग किसा, वो गाणा के