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रमा के लिये / तुलसी रमण
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किसी फुर्सत की शाम
तरतीब से उतरती सिरहाने
कबूतरों-सी
दिन-भर सोची-बुनी
गृहस्थी की भोली सलाहें
सिद्ध मंत्र-सी
मौन मुखर जपती रहती___
अम्मा की सेहत
बच्चों की पढाई
हरी सब्ज़ी के काले भाव
मेरे चेहरे के किसी कोने
निकल आई
हल्की सी झाईं की
गहरी पीड़ा तुम !
दिसम्बर 1990