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रमोलिया-1 / अनिल कार्की

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ए हो
राजा नियम के
ए हो
राजा धरम के

तेरी गुद्दी<ref>दिमाग </ref> फोड़ गिद्द खाए
तेरे हाड़ सियार चूसे
चूहे के बिलों धंसे तेरे अपशकुनी पैर
लमपुछिया<ref>लम्बी पूँछ वाले</ref> कीड़े पड़े तेरी मीठी जुबान में
तेरी आँखों में मक्खियाँ भनके
आदमी का ख़ून लगी तेरी जुबान
रह जाए डुंग<ref> पत्थर</ref> में रे!
नाम लेवा न बचे कोई तेरा

अमूस<ref>अमावस</ref> का कलिया
रोग का पीलिया
मार के निशान का नीला
ढीली हो जाय तेरी ठसक दुःख से

ए हो
मेरे पुरखो
खेत के हलिया<ref>हलवाहा </ref>
आँगन के हुड़किया<ref>हुड़ुक बजाने वाला </ref>
आँफर<ref>जहाँ हथियार बनाए जाते हैं और उन पर धार दी जाती है</ref> के ल्वार<ref>लुहार</ref>
गाड़<ref>छोटी नदी</ref> के मछलिया<ref>मछुवारे</ref>
ढोल के ढोलियार<ref>ढोल वादक</ref>
होली के होल्यार<ref>होली गायक</ref>
रतेली<ref>विवाह में स्वाँग-नौटंकी करती वर पक्ष की महिलाएँ</ref> की भौजी
फतोई<ref> पहाड़ी बास्कट </ref> के औजी
जाग जाग
मेरे भीतर जाग!

ए हो मेरे पुरखो
खेत के कामगारो
पहाड़ों के देवदारो
ज़मीन के दावेदारो
धिनाली<ref>दूध, दही, घी, छाँछ</ref> के दुधघरो<ref>दूध रखने की जगह</ref>
देख लो रे
आज देख लो
अपने पनाती<ref>तीन-तीन पुश्त के अन्तर में पैदा हुए बच्चों के बच्चे।</ref>, झड़नाती<ref>तीन-तीन पुश्त के अन्तर में पैदा हुए बच्चों के बच्चे</ref>, पड़नाती<ref>तीन-तीन पुश्त के अन्तर में पैदा हुए बच्चों के बच्चे</ref> की औलादों को

गाँव की सीवान से लेकर
शहर की चैबटिया<ref>चौराहे </ref> तक हर जगह लुट रहे हैं रे तेरे लाल
अघीयाने<ref>छककर खा लेने के बाद न खाने के लिए बहाने ढूँढ़ना</ref> बामुन की भैसियानी<ref>भैंस की बदबू </ref>खीर से सड़ रहे हैं
हिमाल सन्तानें

खसिया<ref>खस जाति के गुस्सैल</ref> खिसक गए हैं
हसिया<ref>बैल का नाम</ref> ख़त्म हो गए हैं
और हौसियाप्राण<ref>रंगधारी प्राण</ref> तिलबिला रहा है
रजवाड़े अल्पसंख्यक होकर आरक्षण खा रहे हैं
हल बाने<ref>खेत जोतने वाले</ref> वाले अब भी
हल बा<ref>जुताई करना</ref> रहे रहे हैं

आहा हो ठाकुरो
कौन सुनाएगा रे देली में ऋतुरैन
कौन बीरों की कथा कहेगा ऐसे बखत में
जब बीर बचे ही नहीं

ए हो मेरे पुरखो
जागो जागो रे
मेरे भीतर जागो
इस बखत के बीच में

शब्दार्थ
<references/>