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रवि गये जान जब निशि ने / अज्ञेय

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 रवि गये-जान जब निशि ने घूँघट से बाहर देखा;
शशि के मुरझाये मुख पर पायी विषाद की रेखा।
प्रियतम से मिलने सत्वर सम्भ्रान्त चली वह आयी।
उस को निज अंग लगा कर शशि ने जीवन-गति पायी,

'रविरोष अभी बाकी है', 'मिलनोचित समय' नहीं है
'नीलाम्बर व्यस्त हुआ है', 'भूषण-लडिय़ाँ बिखरी हैं',
कब सोचा यह सब निशि ने?
जब उस की स्त्री-आत्मा का आह्वान किया प्रकृति ने?