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रवीन्द्र के प्रति / ज्योतीन्द्र प्रसाद झा 'पंकज'

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काव्य गगन के प्रभापुंज हे
हे रवीन्द्र मतिमान।
विमल तुम्हारे अंशदानों से
आज विश्व द्युतिमान।

मरणोन्मुख संस्कृति ने पाया
तुमसे नूतन प्राण!
तेरी प्रतिभा के अंचल में
छाया स्वर्ण विहान।

तेरे हृदय-बीन से झंकृत
युग का नव संदेश।
तेरे भव्य नवादर्शों से
पावन हुआ स्वदेश।

वर्ण-वर्ण में प्राण भर दिये
छंद-छंद निर्माण
जन-जन में आह्वान भर दिये
तुमने गाकर गान।