भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रसगुल्ला / शिवराज भारतीय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गोळ-गोळ अर धोळा-धोळा
रसगुल्ला भई रसगुल्ला
टाबरियां रै मन नै भावै
बीकाणै रा रसगुल्ला।

सगळां रो ए जी ललचावै
मुंडै में पाणी भर आवै
लूणी रै टेसण मिलज्यावै
मोटा-मोटा रसगुल्ला

कोई छोटा कोई मोटा
रस रै टब में खावै गोता
खुरमाणी चमचम रा साथी
बणै दूध रा रसगुल्ला।

शालू नै रसगुल्ला भावै
पण आ बात समझ नीं आवै
गोळ-मटोळ सा इण गोळां में
रस री बूदां किंयां पुगावै।