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रसें रसें दुनिया ई डूबी गेलै पापी संगें / अनिल शंकर झा
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रसें रसें दुनिया ई डूबी गेलै पापी संगें
कहीं भी नै दीखै भैया लहरोॅ के ओर-छोर।
जहाँ देखोॅ पाप पुण्य मिली जुली एक भेलै
जझों साथें नून तेल लकड़ी के मोल तोर।
हम्में तोहें चढ़ी चलोॅ नावोॅ पर रोशनी के
तोड़ी चलोॅ पाप सरिता के सब कूल-कोर।
कहियो नै कहियो तेॅ भेटतै ऊ नया गाँव
सचमुच दीपतै जे सूरजे ना ओर छोर॥