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रस्ता नया बनाने दो / उर्मिल सत्यभूषण
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रोको मत साथी, तुम मुझको जाने दो
खोया मेरा गीत खोज कर लाने दो
मेरी कल्पना आज किसी की
मुट्ठी में फिर बंद हुई
आसक्ति के तिमिर ज्वार में
मन की ज्योति मंद हुई
मेरा आराधन पावन हो
दीपक नया जलाने दो
कौन रोक सकता है
फूटती कविता को
कौन बांध सकता है
बहती सरिता को
सागर के आलिंगन हेतु जाती
नदिया जाने दो
मेरा जन्म हुआ कि अनगिन
गीत रचूँ
जग को हंसाने की खातिर
आप हंसू
मेरी पीड़ा को जगती की पीड़ा में
घुल जाने दो
काटूंगी जंजीर जो मेरे पांव पड़ी
तोडूंगी चट्टान जो मेरे
राह खड़ी
तोड़-तोड़कर चट्टानों को
रस्ता नया बनाने दो।