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रस्मे-उल्फत निभा के देख लिया / आनंद कुमार द्विवेदी

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रस्म-ए-उल्फत निभा के देख लिया
हमने भी दिल लगा के देख लिया

सुनते आये थे आग का दरिया
खुद जले, दिल जला के देख लिया

उनकी दुनिया में उनकी महफ़िल में
एक दिन, हमने जाके देख लिया

दर्द भी, कम हसीँ नही होते
बे-सबब मुस्करा के देख लिया

उनका हर जुल्म, प्यार होता है
चोट पर चोट खा के देख लिया

इश्क ही अब है बंदगी अपनी
उनको यजदां बना के देख लिया

उनको ‘आनंद’ ही नही आया
हमने खुद को मिटा के देख लिया

यजदां = खुदा